Sunday, October 25, 2015

व्यंग्य क्या है ? एक दृष्टि



"मेरीदृष्टि में व्यंग्य वह गंभीर रचना है जिसमें व्यंग्यकार विसंगति की तह में जाकर उस पर वक्रोक्ति,
वाग्वैदग्ध आदि भाषिक शक्तियों के माध्यम से तीखा प्रहार करता है | उसका लक्ष्य पाठक को गुदगुदाना न
  होकर उससे करुणा,खीज अथवा आक्रोश की पावती लेना होता है |"
पाश्चात्य परम्परा की ओर यदि देखें तो पाते हैं कि प्रारम्भ में पश्चिम  में भी हास्य ओर व्यंग्य यानी ह्यूमर और सटायर के बीच कोई विवेधक सीमा रेखा नहीं थी, इसलिए पश्चिम के विद्वानों ने व्यंग्य को हास्य के साथ जोड़कर परिभाषित करने का प्रयास किया | प्रसिद्ध विदेशी विद्वान मेरिडिथ के अनुसार महान हास्यकार की कौशल पूर्ण कृति में उसके हास्य के साथ साथ व्यापक करुणा का भी समावेश होता है |
यदि आप हास्यास्पद का इतना अधिक मजाक उड़ाते हैं कि उसमे दयालुता ही समाप्त हो जाये तो आप व्यंग्य की सीमाओं में प्रवेश कर जाते हैं |
पाश्चात्य साहित्य की ही भांति प्रारम्भ में हिंदी में भी हास्य और व्यंग्य को एक ही तराजू में तौलकर परिभाषित करने का प्रयास किया गया किन्तु स्वातंत्र्योत्तर काल में स्थिति स्पष्ट होती गयी |हास्य और व्यंग्य के निहितार्थो के अंतर को देखते हुए उन्हें अलग अलग विधाओं के रूप में देखा जाने लगा |

हजारीप्रसाद  दिवेदी  ने अपनी पुस्तक 'कबीर' में हास्य को व्यंग्य के साथ जोड़ते हुए व्यंग्य को परिभाषित करने का प्रयास किया |उन्होंने लिखा है -- "व्यंग्य वह है जहाँ कहने वाला अधरोष्ठो में  हँस रहा हो और सुनने वाला तिलमिला उठा हो और फिर कहने वाले को जबाब देना अपने को और भी उपहासास्पद बना लेना हो जाता हो "

प्रसिद्ध व्यंग्यकार  एवं आलोचक डा.बरसाने लाल चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक 'हिंदी साहित्य में हास्य रस' में भी व्यंग्य को अपने ढंग से  परिभाषित करने का प्रयास किया है | उनके अनुसार "आलम्बन के प्रति तिरस्कार या भर्त्सना की भावना को लेकर बढ़ने वाला हास्य ही व्यंग्य है |
किन्तु इसमें अनावश्यक रूप से से हास्य को व्यंग्य के समान बताने का आग्रह है | 

28 comments:

  1. व्यंगात्मक आलोचना सत्यार्थ उजागर करती है,परंतु इसके दुष्परिणाम आलोचक को भोगने भी पड़ते है। चाहे हास्य-परिहस्य में की गई व्यंगात्मक आलोचनाएँ सुगन्धित रेशमी रुमाल में चाहे जूते मारनी जैसी हो,दर्शक तो केवल रुमाल से झरती सुगंध लेते है,और वह बेचारा दिल ही दिल में तिलमिलाता है।

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  3. Replies
    1. जी इस प्रयास को सफल तो आप ही लोग बनायेंगे.

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  4. बहुत ही अच्‍छी पहल कल्‍लू मामा, लेकिन लगता है आप इस भान्‍जे पर नाराज चल रहे है

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  5. कवि बौड़म का प्रणाम

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  6. आजकल लोग व्यंग्य को भी व्यंग्य के रुप में लेते हैं। उसकी गंभीरता को नहीं समझते। क्यों?

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  7. इसके पीछॆ का कारण कुछ लेखकों और संपादकों की लापरवाही और अज्ञान- है ! अच्छे व्यंग्य के लिए जरूरत होती है विसंगति की पकड़ ,भाषा और शैली पर नियंत्रण ,सरोकारों के प्रति गंभीरता और प्रहारात्मक्ता की ...इन सब के सही संतुलन से एक अच्छे व्यंग्य का जन्म होता है ..अगर ऐसा नही है और उसके स्थान पर राजनीति ,समाज या किसी व्यक्ति विशेष पर चटखारेदार टिप्पणी को व्यंग्य रचना समझ लिया जाता है तो ऐसी स्थतिया आ सकती हैं ! ( श्री गंभीर सिंह के प्रश्न के उत्तर में )

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  8. बढिया ब्लाग। बधाई।

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    1. आपकी प्रेरणा से ही बना है अनूप जी

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  9. आप मुझसे नाराज है पत्रिका के लिए आपने रचना भेजी नहीं तो मैं आप का यही व्‍यग्‍ंय क्‍या है पत्रिका के लिए ले ले रहा हूँ।

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