हास्य और व्यंग्य के
बीच मूलभूत अंतर है | दोनों की प्रकृति बिलकुल अलग है | दोनों का प्रभाव क्षेत्र अलग
अलग है | हास्य का कार्य जहाँ पाठक का मनोरंजन करना है,उसे हँसाना-गुदगुदाना होता
है | वहीँ व्यंग्य का कार्य प्रहार करना है,विसंगति के मर्म को पहचान कर उसके
जिस्म में नश्तर चुभोने जैसा है | हास्य रचना की समाप्ति पर पाठक खिलखिलाता है,वहीँ
अच्छे व्यंग्य की समाप्ति पर पाठक अव्यवस्था के विरुद्ध खीझ और आक्रोश से भर उठता है |
हास्य और व्यंग्य
पाठक वर्ग के भीतर का विभेद है | हास्य का पाठक और श्रोता सामान्य से सजग पाठक तक
कोई भी हो सकता है | उसका आनंद उठा सकता है जबकि गंभीर व्यंग्य का पाठक भी गंभीर
प्रवृति का हो सकता है ताकि व्यंग्य के कथ्य,प्रहरात्मकता और प्रतीयमान अर्थ को
सही अर्थों में ग्रहण कर सके |
मेरी दृष्टि में
हास्य और व्यंग्य के बीच का अंतर इस प्रकार है “एक पौधे से गुलाब के फूल को तोडना
और उसकी खुशबू लेने का आनंद हास्य है, तो व्यंग्य उसी टहनी पर लगे कांटो के दर्द
का अहसास है | हास्य का आधार मनोरंजन है तो व्यंग्य का संवेदना”
कई बार हास्य और
व्यंग्य के आलंबन एक जैसे हो सकते हैं | उदाहरण के तौर पर किसी पार्टी में एक
व्यक्ति अपनी तोंद पर प्लेट रखे खड़ा है | इसी पर रचना लिखी जा रही है | हास्य रचना
में मोटे व्यक्ति के मोटापे, उसके खड़े होने की शैली, उसका पहनावा,तोंद पर प्लेट
रखने के अटपटे ढंग से रखने के कारण हास्य की सृष्टि की जा सकती है | किन्तु
व्यंग्यकार के लिए इस व्यक्ति का मोटापा या तोंद पर रखी प्लेट किसी काम की नहीं
बशर्ते कि वह भ्रष्ट राजनेता या रिश्वतखोर नौकरशाह नहीं है | यदि वाह भ्रष्ट है तो
व्यंग्यकार उसके मोटापे के पीछे की परतों को खोलेगा, बताएगा कि उस नेता के पेट में
कितनी टन फाइलें,घोटालों, भाई भतीजावाद और कमीशन खोरी के भारी भरकम बोरे छिपे हैं
|उसकी तोंद के मोटे होने का रहस्य यही है | इस सब विवरण को वह भाषा के प्रचलित
प्रतिमानों के खिलवाड़ के साथ इस प्रकार प्रस्तुत करेगा कि हास्य की सृष्टि करती
दिखने वाली यह रचना तीखे और कटु व्यंग्य में परिवर्तित हो जायेगी |